इसलिए चाणक्य ने कहा है एक बच्चा सबसे अच्छा -आचार्य चाणक्य

सभी माता-पिता को चाहिए कि वे पांच वर्ष की आयु तक अपने बच्चों के साथ प्रेम और दुलार करें। इसके जब पुत्र दस वर्ष का हो जाए तो और यदि वह गलत आदतों का शिकार हो रहा है तो उसे ताडऩा या दण्ड भी दिया जा सकता है। जिससे उसका भविष्य सुरक्षित रह सके। जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए तो उसके साथ मित्रों के जैसा व्यवहार करना चाहिए।


आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब तक बच्चा पांच वर्ष का हो जाए तब तक माता-पिता को उससे बहुत प्रेम और दुलार के साथ पेश आना चाहिए। अक्सर ज्यादा लाड़-प्यार में बच्चे गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं और प्रेम से वे नहीं समझ रहे हैं तो उन्हें सजा देकर सुधारा जा सकता है। डरा-धमकाकर बच्चों को सही राह पर लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए उसके बाद उनके साथ मित्रों की तरह व्यवहार रखना चाहिए। इस उम्र के बाद बच्चों के साथ किसी भी तरह की ताडऩा या पिटाई नहीं की जानी चाहिए। अन्यथा बच्चा घर छोड़कर भी जा सकता है। जब बच्चा घर-संसार को समझने लगे तो उससे मित्रों की तरह व्यवहार रखना श्रेष्ठ रहता है।


 भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए भारतीय सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया जो आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुए और अखंड भारत का निर्माण किया।


चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।


आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। जो भी व्यक्ति नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।


इन पंक्तियों के जरिये आचार्य चाणक्य बच्चों को पाँच वर्ष की उम्र प्राप्त करने तक दुलारने और उसके साथ प्रेम भरा बर्ताव करने का उपदेश देते हैं. यह वैसी अवस्था होती है जब बच्चे अबोध होते हैं. किसी चीज का बोध न होने के कारण वह कुछ भी ऐसा कर सकता है जिसे गलती की संज्ञा कदापि नहीं दी जा सकती.


आयु बढ़ने के साथ उसे चीजों का बोध होने लगता है. रिश्तों का बोध होने के साथ-साथ सांसारिक चीजों के प्रति उसके मन में मोह उत्पन्न होने लगता है. दस वर्ष की अवस्था प्राप्त करने पर बाल हठ और अन्य कई कारणों से वह कोई गलत कार्य करने पर उतारू हो जाता है. गलत-सही के बीच की महीन रेखा को न भाँप पाने के कारण बच्चों को डाँटा जा सकता है. जब उसी बच्चे की उम्र सोलह हो जाती है तो उसे सखा समान समझना चाहिये. इस उम्र में कोई गलती करने पर उसे मित्र की भाँति समझाने की प्रवृति का विकास करना चाहिये।


 


No comments:

Featured Post

Social Media Marketing: Earn Money Online

  Social Media Marketing: Earn Money Online In today’s digital age, social media marketing has emerged as a powerful tool not just for ...