बच्चों का नैसर्गिक विकास हो सके ऐसी परवरिश करे - आचार्य ओशो से जाने

परवरिश और साहस
बच्चा पेड़ चढ़ने की कोशिश कर रहा है; तुम क्या करोगे? तुम तत्काल डर जाओगे--हो सकता है कि वह गिर जाए, हो सकता है वह अपना पैर तोड़ ले, या कुछ गलत हो जाए। और डरकर तुम भागते हो और बच्चे को रोक लेते हो। यदि तुम्हे  पता  होता कि पेड़ पर चढ़ने में कितना आनंद आता है, तुमने बच्चे की मदद की होती ताकि बच्चा पेड़ पर चढ़ना सीख जाता। और यदि तुम डरते हो, उसकी मदद करो, जाओ और उसे सिखाओ। तुम भी उसके साथ चढ़ो। उसकी मदद करो ताकि वह गिरे नहीं। तुम्हारा डर ठीक है--यह तुम्हारे प्रेम को दर्शाता है कि हो सकता है कि बच्चा गिर जाए, लेकिन बच्चे को पेड़ पर चढ़ने से रोकना बच्चे को विकसित होने से रोकना है। पेड़ों पर चढ़ने में कुछ खास है। यदि बच्चे ने यह कभी नहीं किया है, वह किन्हीं अर्थों में गरीब रह जाएगा, वह अपने सारे जीवन के लिए कुछ समृद्धि से चूक जाएगा। तुम उसे कुछ बहुत सुंदर बात से वंचित कर रहे हो, और उसे जानने का कोई अन्य मार्ग नहीं है। इससे वंचित रह जाने से तो कभी-कभार, पेड़ पर से गिर जाना बहुत बुरा भी नहीं है।


 
या, बच्चा बाहर बरसात में जाना चाहता है और बरसात में गली में चारों तरफ दौड़ना चाहता है, और तुम डरते हो कि कहीं उसे सर्दी न लग जाए या निमोनिया ना हो जाए या और कुछ--और तुम्हारा भय उचित है। इसलिए ऐसा  कुछ करो कि वह सर्दी के प्रति अधिक प्रतिरोधी हो जाए। उसे डाक्टर के पास ले जाओ; डाक्टर को पूछो कि उसे कौन से विटामिन्स दिए जाएं ताकि वह बारिश में दौड़ सके और आनंद ले सके, नाच सके और वहां सर्दी होने का कोई भय ना रहे या निमोनिया नहीं होगा। लेकिन उसे रोको मत। जब बारिश हो रही हो तब गली में दौड़ना इतना आनंद देता है। इससे चूकना किसी बहुत ही मूल्यवान बात से चूकना है।
 
यदि तुम प्रसन्नता जानते हो और यदि तुम सचेत हो, तुम बच्चे के लिए समझ सकोगे कि वह क्या महसूस कर रहा है।
 
साहस 
प्रारंभ में साहसी और डरपोक में फर्क नहीं होता है। दोनो में भय होता है। भेद यह है कि डरपोक अपने भय की सुनता है और उसका अनुसरण करता है। साहसी व्यक्ति उन्हें एक तरफ रख देता है और आगे बढ़ता है। भय तो है, वह उन्हें जानता है, लेकिन साहसी व्यक्ति सभी भय के बावजूद अज्ञात में जाता है। साहसी का मतलब यह नहीं होता है कि वह भयमुक्त होता है, बल्कि सभी भय के बावजूद अज्ञात में जाने वाला होता है।
जब तुम समुद्र में बगैर नकशे के जाते हो, जैसे कि कोलंबस ने किया... भय होता है, बहुत भय होता है, क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि क्या होने वाला है और तुम सुरक्षा का किनारा छोड़ रहे हो। एक तरह से तुम पूरी तरह से ठीक थे; सिर्फ एक ही बात चूक रही थी--रोमांच। अज्ञात में जाना तुम्हें रोमांचित करता है। हृदय धड़कने लगता है; तुम फिर से जीवंत हो जाते हो, पूरी तरह से जीवंत। तुम्हारे होने का प्रत्येक रेशा जीवंत हो जाता है क्योंकि तुमने अज्ञात की चुनौती को स्वीकारा।
अज्ञात की चुनौती को स्वीकारना साहस है। भय है, लेकिन यदि तुम बार-बार चुनाती को स्वीकारते रहते हो, धीरे-धीरे वे भय तिरोहित हो जाएंगे। अज्ञात जो आनंद लाता है, अज्ञात के साथ जो महान उत्साह घटने लगता है, वह तुम्हें समग्र बनाता है, बहुत अखंडता देता है, तुम्हारी बुद्धिमत्ता को तीक्ष्ण बनाता है। तुम्हें लगने लगता है कि जीवन सिर्फ ऊब ही नहीं है, जीवन रोमांच है। धीरे-धीरे भय तिरोहित होने लगते हैं और तुम नए रोमांच खोजने और ढूंढ़ने लगते हो।
अज्ञात के लिए ज्ञात को, अपरिचित के लिए परिचित को, असुविधाजनक के लिए सुविधानजक को, दुष्कर यात्रा के लिए दांव पर लगा देना साहस है। तुम नहीं जानते कि तुम यह कर पाओगे या नहीं। यह जुंआ है, लेकिन सिर्फ जुंआरी जानते हैं कि जीवन क्या होता है।


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