नवरात्रि के नवे दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती जो माँ का नवॉ रूप है ।नवरात्रि की नवमी तिथि को कन्याओं को भोजन करने की परंपरा है. क्या आप जानते हैं कन्या पूजन के लिए नवमी तिथि ही क्यों इतना महत्वपूर्ण माना गया है. हालांकि कुछ लोग नवमी की बजाय नवमी पर कन्या पूजन के बाद उन्हें भोजन कराते हैं. आइए जानते हैं नवमी पर कन्याओं को भोजन कराने का महत्व और इसके नियम क्या हैं.
नवमी पर कन्याओं को भोजन कराने के नियम
- नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है
- यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है
- इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है
- हालांकि नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है, लेकिन नवमी और नवमी को अवश्य ही पूजा की जाती है
- 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है.
कन्या पूजन की विधि
- एक दिन पूर्व ही कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें.
- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं.
- अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाएं.
- सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर स्वच्छ पानी से धोएं.
- उसके बाद कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुंकुम लगाएं.
- फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं.
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें.
हिंदू पंचांग की नौवीं तिथि को नवमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली नवमी को कृष्ण पक्ष की नवमी और अमावस्या के बाद आने वाली नवमी को शुक्ल पक्ष की नवमी कहते हैं।
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