आज के समय के अनुसार शिक्षा, शिक्षक व शिक्षण में किस तरह के बदलाव की जरुरत है - आज के स्पॉट में इसी विषय पर सद्गुरु अपने विचारों को विस्तार से रख रहे हैं:- सदगुरु
पिछले शनिवार को ईशा योग केंद्र में एक 'शिक्षा में नवीनता' विषय पर पहला सम्मेलन (कांफ्रेंस) आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के पीछे बुनियादी सोच यह थी कि अपनी शिक्षण-पद्धति को या कहें जिस तरह से हम शिक्षा दे रहे हैं, उन तरीकों पर विचार किया जाए। किसी नई चीज को सीखना अपने आप में एक सुखद अहसास होता है, तो फिर स्कूल की पढ़ाई बच्चों के लिए इतनी तकलीफदेह क्यों होती है? जिन दिनों मैं स्कूल में था तो स्कूल जाने से बचने के लिए मैं हर संभव कोशिश करता था।
थोड़ा ध्यान, थोड़ा योग और ऐसी ही दूसरी चीजें उनके जीवनस्तर को बढ़ा सकती हैं। शिक्षक इसका लाभ ले सकते हैं, इन प्रशिक्षण में ये चीजें शमिल होने से शिक्षकों को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
हमें स्कूलों का निर्माण इस तरह से करना चाहिए, जहां हर बच्चा जाना चाहे। इसके लिए हमें बच्चों से पहले बड़ों को शिक्षित करने की जरूरत है। बच्चे कुदरती तौर पर खुशमिजाज होते हैं और वे आबादी का ऐसा हिस्सा हैं, जिनके साथ काम करना सबसे आसान होता है। तो फिर सवाल है कि पढ़ाने के लिए माहौल को खुशनुमा बनाना एक मुश्किल काम क्यों हो जाता है? आज हमारे पास ऐसे कई वैज्ञानिक और चिकित्सकीय प्रमाण मौजदू हैं, जिनसे साबित होता है कि अगर आप एक खुशनुमा माहौल में होते हैं तो आपका शरीर व दिमाग सर्वश्रेष्ठ तरीके से काम करता है। अगर आप एक भी पल बिना उत्तेजना, चिड़चिड़ाहट, चिंता, बैचेनी या गुस्से के रहते हैं, अगर आप सहज रूप से खुश रहते हैं, तो कहा जाता है कि बुद्धि का इस्तेमाल करने की आपकी क्षमता एक ही दिन में सौ फीसदी बढ़ सकती है।
आपका खुशहाल अस्तित्व, आपको बोध की उच्च क्षमता और कामकाज के लिए अधिक सक्षम बनाता है। जब तक आप खुद खुशमिजाज नहीं होंगे, तब तक आप किसी और को खुश रहने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते। 'हां मैं खुशमिजाज होना चाहता हूं, लेकिन... क्या आप जानते हैं कि उसने क्या किया?' 'हां मैं खुशमिजाज होना चाहता हूं, लेकिन. . . मौसम अच्छा नहीं है।' जीवन में बहुत सारे 'लेकिन' हैं।
अब समय आ गया है कि हम अपनी शिक्षा पद्धति के बारे में पुनर्विचार करें और उसे नए सिरे से तराशें, क्योंकि हमारे पास आर्थिक साधन आने वाले हैं। हमारे पास आज दुनिया तक पहुंचने का ऐसा मौका है जो अब से पहले कभी नहीं था और हमारे पास ऐसा नेतृत्व है, जो इन तमाम बदलावों को साकार करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है।
अगर हम अपने जीवन से इन सारे 'लेकिन' को लात मार कर बाहर निकाल दें तो शिक्षा का खुशनुमा माहौल बनाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया हो जाएगी। अगर हम खुशमिजाज हैं तो हम जो भी करेंगे, जो भी बनाएंगे, जिसकी भी रचना करेंगे, उसमें यह खूबी दिखेगी। फिलहाल हम सबसे बड़ी गलती यह कर रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा लक्ष्य-केन्द्रित हो गए हैं, जो चीजों को करने का पश्चिमी तरीका है। हम सबसे बड़ा आम तो चाहते हैं, लेकिन हमारी दिलचस्पी पेड़ में नहीं, मिट्टी में तो बिलकुल नहीं है। योग में हम कहते हैं कि अगर आपकी एक आंख लक्ष्य पर है तो अपना मार्ग तलाशने के लिए आपके पास सिर्फ एक आंख बचती है, जो कि बिल्कुल बेअसर तरीका होगा। अगर आपकी दोनों आंखें मार्ग पर लगी होंगी तो आप अपना रास्ता पा लेंगे।
चाहे कोई विद्यार्थी हो या कोई कारोबारी, चाहे देश चलाना हो या दुनिया के अन्य सभी काम, जब हम बहुत ज्यादा लक्ष्य-केन्द्रित हो जाते हैं तो बस अंतीम नतीजा महत्वपूर्ण हो जाता है, जीवन नहीं। हम यह देखने से चूक जाते हैं कि जीवन का अंतिम नतीजा तो बस मृत्यु है। हम चाहे जो भी काम करें, चाहे उसका जो भी नतीजा निकले, हमारा मुख्य फोकस इस बात पर होना चाहिए कि हम उस काम को सबसे सुंदर तरीके से कैसे करें। हम अपने काम करने के तरीके व साधनों को बेहतर बनाने के लिए विशेषज्ञों की मदद भी ले सकते हैं। लेकिन इन तरीकों को सफलतापूर्वक इस्तेमाल करने के लिए हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो खुशमिजाज हों और जो यह जानते हों कि अपने जीवन को खूबसूरत कैसे बनाया जाए। अगर आप यह नहीं जानते कि अपने जीवन को सुंदर कैसे बनाया जाए तो आप दूसरों के जीवन को सुंदर कैसे बना सकते हैं?
अगर आप इस देश की पांरपरिक शिक्षा-प्रणाली की ओर मुड़कर देखें तो माता-पिता या अभिभावक अपने बच्चों को एक ऐसे शिक्षक या आचार्य या गुरु को सौंप दिया करते थे, जिसे वह न सिर्फ एक ज्ञानी इंसान के तौर देखते थे, बल्कि एक सिद्ध या कहें विकसित प्राणी के रूप में भी देखते थे। वे जानते थे कि अगर उनके बच्चे ऐसे इंसान के हाथों में हैं तो वे स्वाभाविक रूप से खिल उठेंगे।
हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को इस मौलिकता के साथ तैयार करना होगा जो हमारे हिसाब और जरूरतों के मुताबिक हो, क्योंकि हजारों सालों से यह धरती जिज्ञासुओं व साधकों की रही है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षा दे कौन रहा है। शिक्षक का विकास होना बेहद महत्वपूर्ण है। इसका यह मतलब हर्गिज नहीं कि उन्हें शिक्षण को लेकर किसी तरह की तरकीब या युक्तियां सीखने की जरूरत है। कोई भी शिक्षक एक खिला हुआ इंसान होना चाहिए, साथ ही वह अपेक्षाकृत अधिक खुशमिजाज, प्रेम करने वाला, करुणामय और चेतन भी होना चाहिए। यह एक ऐसी चीज है, जिस पर हर इंसान को खुद ही काम करना पड़ता है। शिक्षा में आध्यात्मिकता और योग को लाने के पीछे वजह यही है कि किसी चीज के बारे में जानने की इच्छा रखना और आध्यात्मिक होना, दोनों ही साथ-साथ चलते हैं। आप एक आध्यात्मिक जिज्ञासु होते हैं, न कि एक आध्यात्मिक मतानुयायी। इसी तरह से वैज्ञानिक भी जिज्ञासु हैं। इसलिए एक शिक्षक का जिज्ञासु होना महत्वपूर्ण है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का जो सार है, वह शिक्षा के क्षेत्र की आवश्यकता है, क्योंकि एक शिक्षार्थी को सक्रिय रूप से जिज्ञासु होना ही पड़ेगा। चाहे वह भौतिक शास्त्र हो, रसायन शास्त्र हो, जीव विज्ञान हो या आध्यात्मिकता - मूल रूप से सबमें यही महत्वपूर्ण होता है - जीवन के किसी खास पहलू से जुड़े सत्य की तलाश।
To be continue........
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