बौद्ध धर्म की आधारभूत शिक्षाएं,
चार आर्य सत्य
बुद्ध द्वारा दी गई धर्म की सबसे बुनियादी शिक्षाओं को “चार आर्य सत्यों” के नाम से जाना जाता है ─ चार ऐसे तथ्य जिन्हें सिद्ध जन सत्य मानते हैं। बुद्ध ने पाया कि सभी मनुष्यों के जीवन में (1) दुख का होना एक सत्य है। हालाँकि जीवन में नानाविध आनन्द उपलब्ध हैं, लेकिन इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि जीवन कठिनाइयों से भरा है। मनुष्य के स्वयं के और उसके प्रियजनों के रोग, वृद्धावस्था और मृत्यु, जीवन की कुंठाएं, अन्य लोगों के साथ हमारे सम्बंधों से उत्पन्न होने वाली निराशाएं आदि अपने आप में बड़े दुख हैं। किन्तु लोग भ्रम पर आधारित अपने व्यवहार से इस स्थिति को और भी पीड़ादायक बना लेते हैं।
(2) चैतन्य का अभाव या सत्य से अनभिज्ञ होना इन दुखों का वास्तविक कारण है। उदाहरण के लिए, सभी लोग स्वयं को इस सृष्टि का केन्द्र बिन्दु मान कर चलते हैं। जब ये लोग किसी अबोध बालक की तरह अपनी आँखें मूँद लेते हैं तो उन्हें लगता है कि बाकी सभी लोगों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इस दृष्टिभ्रम के कारण उन्हें आभास होता है कि अकेले वे ही महत्वपूर्ण हैं और इसलिए हमेशा उनकी इच्छा का ही सम्मान किया जाना चाहिए। ऐसे आत्मकेन्द्रित और अहंकारी दृष्टिकोण के कारण वे लोग विवाद, झगड़े और यहाँ तक कि युद्ध तक करते हैं। यदि यह बात सत्य होती कि वे सृष्टि का केन्द्र बिन्दु हैं तो हर किसी को उनसे सहमत हो जाना चाहिए था। लेकिन कोई भी उनसे सहमत नहीं होगा क्योंकि हर दूसरा व्यक्ति यही समझता है कि वह स्वयं सृष्टि का केन्द्र बिन्दु है। इस विषय में वे सभी सही नहीं हो सकते।
किन्तु इन दुखों को (3) सही अर्थ में इस प्रकार से रोक पाना सम्भव है कि बाद में हमें फिर कभी दुख का अनुभव न हो। यह तभी हो सकता है जब हम (4) चित्त के सत्य मार्ग को अपनाएं ताकि हमें सत्य का बोध हो सके।
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