नए समाज की, नए आदर्शों, जनमानस में प्रतिष्ठापना करने के लिए यह अनिवार्य रूप से आवश्यक है कि हर कोई दूसरों के सामने अपना अनुकरणीय आदर्श रखें। इस पद्धति को अपनाए बिना जनमानस को उत्कृष्टता की दिशा में प्रभावित एवं प्रेरित किया जाना संभव नहीं। इसलिए सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह है कि प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके जीवन में आलस्य, प्रमाद, अव्यवस्था एवं अनैतिकता की जो दुर्बलताएं समाई हुई हों, उनका गंभीरतापूर्वक निरीक्षण करे और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने की तुंरत कोशिश करें। इन 10 सूत्रों को जीवन में अपनाने वाले कभी घाटे में नहीं रहते, बल्कि हर क्षेत्र में सफलता हासिल करते हैं।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जयंती विशेष : भगवान् की इच्छा वर्तमान समय में युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है
1- समय जैसी जीवन की बहुमूल्य निधि का हम ठीक प्रकार सदुपयोग करते हैं या नहीं? आलस्य और प्रमाद में उसकी बरबादी तो नहीं होती?
2- जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का हमें ध्यान है या नहीं? शरीर सज्जा में ही इस अमूल्य अवसर को नष्ट तो नहीं कर रहे? देश, धर्म, समाज और संस्कृति की सेवा के पुनीत कर्तव्य की उपेक्षा तो नहीं करते?
3- अपने विचारधारा एवं गतिविधियों को हमने अंधानुकरण के आधार पर बनाया है या विवेक, दूरदर्शिता एवं आदर्शवादिता के अनुसार उनका निर्धारण किया है?
4- मनोविकारों और कुसंस्कारों के शमन करने के लिए हम संघर्षशील रहते हैं या नहीं? छोटे-छोटे कारणों को लेकर हम अपनी मानसिक शांति से हाथ धो बैठने और प्रगति के सारे मार्ग अवरुद्ध करने की भूल तो नहीं करते।
5- कटु भाषण, छिद्रान्वेषण एवं अशुभ कल्पनाएँ करते रहने की आदतें छोड़कर सदा संतुष्ट, प्रयत्नशील एवं हँसमुख रहने की आदत हम डाल रहे हैं या नहीं?
6- शरीर, वस्त्र, घर तथा वस्तुओं को स्वच्छ एवं सुव्यवस्थित रखने का अभ्यास आरंभ किया या नहीं? श्रम से घृणा तो नहीं करते?
7- परिवार को सुसंस्कारी बनाने के लिए आवश्यक ध्यान एवं समय लगाते हैं या नहीं?
8- आहार सात्विकता प्रधान होता है न? चटोरपन की आदत छोड़ी जा रही है न? सप्ताह में एक समय उपवास, जल्दी सोना, जल्दी उठना, आवश्यक ब्रह्मचर्य का नियम पालते हैं या नहीं?
9- ईश्वर उपासना, आत्मचिंतन एवं स्वाध्याय को अपने नित्य-नियम में स्थान दे रखा है या नहीं?
10- आमदनी से अधिक खर्च तो नहीं करते? कोई दुर्व्यसन तो नहीं? बचत करते हैं न?
उपरोक्त दस प्रश्न नित्य अपने आपसे पूछते रहने वाले को जो उत्तर आत्मा दे, उन पर विचार करना चाहिए और जो त्रुटियां दृष्टिगोचर हों, उन्हें सुधारने का नित्य ही प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में हर क्षेत्र में सफलता पीछे-पीछे दौड़ने लगेगी।
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