2 पेड़ो की कमी ।
40 साल पहले, मैं जब एक फ़ार्म में रहता था, तो देखता था कि सभी किसानों के खेतों में कुछ पेड़ ज़रूर होते थे। ये किसान के लिये एक तरह से बीमे जैसा था। यह संस्कृति खास तौर पर कर्नाटक में थी कि उन पेड़ों को वे अपने बेटों, बेटियों के नाम दे देते थे। जब एक बेटी के विवाह का अवसर आता था तो वे एक पेड़ काट डालते और उससे सारा खर्च निकल जाता था। अगर बेटे को उच्च शिक्षा के लिये यूनिवर्सिटी जाना होता तो एक और पेड़ से उसका भी खर्च निकल आता।
खेतों पर हमेशा पेड़ होते ही थे। लेकिन 40 साल पहले रासायनिक खादों की कंपनियों ने भारत के गाँवों में ऐसा प्रचार करना शुरू किया कि अगर आप खेतों पर पेड़ रखेंगे तो उनकी जड़ें सब खाद खा जायेंगी और फसल कमज़ोर होगी। तो उन्होंने किसानों को पेड़ काट डालने के लिये तैयार किया। ये सोच कर कि रासायनिक खादें पेड़ों पर व्यर्थ हो जायेंगी, हमने लाखों पेड़ काट दिए।
आज परिस्थिति ये हो गयी है कि हमारा पानी का प्रत्येक स्रोत - चाहे ज़मीन के नीचे का पानी हो या नदियों का - कम हो रहा है। उसका कारण ये है कि भले ही पिछले 100 सालों से, सारे उपमहाद्वीप में, बरसात लगभग एक जैसी ही हो रही है, पर पेड़ों के न रहने से ज़मीन के अंदर पानी को रोक कर रखने की हमारी क्षमता समाप्त हो गयी है। जब बरसात होती है तो पानी रुकता नहीं, बह जाता है और बाढ़ आ जाती है। और फिर जब बरसात ख़त्म हो जाती है तो सूखा पड़ जाता है।
यदि आप आज के जल संकट के बारे में विचार करें तो 1947 में, देश में प्रति व्यक्ति जितना पानी था, आज उसका 25% ही उपलब्ध है। यह प्रगति नहीं है। यह तो कोई विकास नहीं है। तमिलनाडु के कई शहरों में बहुत समय से ऐसा हो रहा है कि लोग तीन दिनों में एक ही बार नहाते हैं।
तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सारा पानी बह कर तेजी से नदियों में न पहुंच जाये। यह करने का एक ही रास्ता है कि हमारी ज़मीन पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ हों। यह कोई रॉकेट विज्ञान नहीं है। यह मेरा मुख्य उद्देश्य हो गया है। मैं सारे विश्व को, संयुक्त राष्ट्र संघ को, केंद्र सरकार को, राज्य सरकारों को यही कह रहा हूँ। बड़े बाँध, रोधी बाँध, बराज ये सब पानी के उपयोग के लिये ठीक हैं पर आप इनसे पानी की मात्रा नहीं बढ़ा सकते। ज़मीन के अंदर पानी को रोकने का सिर्फ एक ही तरीका है - पेड़ लगाना।
इसीलिये, हमनें कावेरी पुकारे अभियान शुरू किया है। हम पूरी कावेरी घाटी में, वृक्ष आधारित खेती को बढ़ावा दे कर, किसानों को उनके खेतों में 242 करोड़ पेड़ लगाने में मदद कर रहे हैं। कावेरी एक पहला कदम है। अगर हम ये काम कावेरी घाटी में 12 वर्ष में सफलतापूर्वक कर लेते हैं, तो ये राष्ट्र के लिये और विश्व के उष्ण कटिबंधीय इलाकों के लिये एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध होगा।
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