1 अकुशल खेती
सदगुरु: भारत में 50% से ज्यादा ज़मीन पर खेती होती है। इसका अर्थ ये है कि हम 50% से ज्यादा ज़मीन को लगातार जोत रहे हैं, लेकिन यदि हम खेती में ज्यादा वैज्ञानिक प्रक्रियायें लाएं, तो केवल 30% ज़मीन ही सारे भारतीयों को खिलाने के लिये पर्याप्त है।
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Image credit: Nandhu Kumar from Pixabay
तस्वीर श्रेय: पिक्साबे से नंदु कुमार
यह संस्कृति खास तौर पर कर्नाटक में थी कि उन पेड़ों को वे अपने बेटों, बेटियों के नाम दे देते थे। जब एक बेटी के विवाह का अवसर आता था तो वे एक पेड़ काट डालते और उससे सारा खर्च निकल जाता था।
अभी हम जिस ढंग से खेती कर रहे हैं वह पिछले 1000 साल से वैसा ही है, कुछ भी नहीं बदला। ये बहुत ही अकुशल ढंग से की जा रही है। उदाहरण के लिये, भारत में 1 किग्रा चावल उगाने के लिये 3500 लीटर पानी खर्च होता है। चीन में इससे आधे में काम चल जाता है और उनकी उत्पादकता हमारी उत्पादकता से दो गुनी है। हमें अपनी खेती में आधुनिक विज्ञान का ज्यादा उपयोग करना चाहिये। हमारे विश्वविद्यालयों में बहुत सारे वैज्ञानिक हैं, बहुत ज्ञान उपलब्ध है, बहुत तकनीकें हैं लेकिन वह खेती की ज़मीन तक नहीं पहुँच रहा।
रैली फ़ॉर रिवर्स के दौरान हमनें तीन वियतनामी विशेषज्ञों को बुलाया था क्योंकि वियतनाम फलों का एक बड़ा निर्यातक देश है। जब हमनें उनसे बात करनी शुरू की तो वे हम पर हँस रहे थे। उन्होंने कहा, "22 साल पहले, हम तीनों दिल्ली के एग्रीकल्चर कॉलेज में पढ़ते थे। हमनें वहाँ से सब कुछ सीखा और वो सारी बातें हमनें अपनी ज़मीन पर आज़मायीं। आप के पास सब ज्ञान है पर आप लोग बस रिसर्च पेपर लिखते हैं और अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में जाते हैं। आप वो चीजें ज़मीन पर नहीं करते। यही आप की समस्या है"।
इसीलिये हम तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और कोयम्बटूर के फारेस्ट कॉलेज के साथ मिल कर काम कर रहे हैं, जिससे हमारे विश्वविद्यालयों में उपलब्ध ज्ञान, तकनीकी जानकारी का इस्तेमाल खेती की जमीनों पर किया जा सके।
भारत के सामने विशाल जल संकट खड़ा है। बरसात के मौसम में बाढ़ आ रही है, और बरसात के बाद सूखा पड़ रहा है। सदगुरु इस संकट के तीन कारण बता रहे हैं, और उससे निपटने के उपाय भी।
To be continue.......
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