प्रणाम मुद्रा : यह पहली मुद्रा है। इसे करने के लिए सावधान की मुद्रा में खड़े होकर अपने दोनों हाथों को कंधे के समानांतर उठाते हुए दोनों हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाएं। हाथों के अगले भाग को एक-दूसरे से चिपका लीजिए फिर हाथों को उसी स्थिति में सामने की ओर लाकर नीचे की ओर गोल घूमते हुए नमस्कार की मुद्रा में खड़े होना होता है। इस दौरान सामान्य रूप से सांस लेते रहें।
हस्त उत्तानासन : इसे करने के लिए दोनों हाथों को कानों के पास से सांस अंदर लेते हुए ऊपर की ओर उठाएं। बाजुओं को स्ट्रेच करें और कमर को पीछे की ओर झुकाएं। शुरुआत में अगर करने में दिक्कत हो रही है, तो जितना संभव हो उतना ही करें। इस आसन के दौरान गहरी और लंबी सांस भरने से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा इसके अभ्यास से हृदय का स्वास्थ्य बरकरार रहता है। पूरा शरीर, फेफड़े, मस्तिष्क अधिक मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं।
पाद हस्तासन या पश्चिमोत्तनासन : तीसरी अवस्था में सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकिए। इस आसन में हम अपने दोनों हाथों से अपने पैर के अंगूठे को पकड़ते हैं, और पैर के टखने भी पकड़े जाते हैं। चूंकि हाथों से पैरों को पकड़कर यह आसन किया जाता है इसलिए इसे पदहस्तासन कहा जाता है। यह आसन खड़े होकर किया जाता है।
अश्व संचालन आसन : इस मुद्रा को करते समय पैर का पंजा खड़ा हुआ रहना चाहिए। इस आसन को करने के लिए हाथों को जमीन पर टिकाकर सांस लेते हुए दाहिने पैर को पीछे की तरफ ले जाइए। उसके बाद सीने को आगे खीचते हुए गर्दन को ऊपर उठाएं। इस आसन के अभ्यास के समय कमर झुके नहीं इसके लिए मेरूदंड सीधा और लम्बवत रखना चाहिए।
पर्वतासन : इस मुद्रा को करने के लिए जमीन पर पद्मासन में बैठ जाइए। सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए हुए बाएं पैर को भी पीछे की तरफ ले जाइए। ध्यान रखें कि आपके दोनों पैरों की एड़ियां आपस में मिली हों। नितम्ब को ऊपर उठाइए ताकि सारा शरीर केवल दोनों घुटनों के बल स्थित रहे। शरीर को पीछे की ओर खिंचाव दीजिए और एड़ियों को जमीन पर मिलाकर गर्दन को झुकाइए।
अष्टांग नमस्कार : इस स्थिति में सांस लेते हुए शरीर को जमीन के बराबर में साष्टांग दंडवत करें और घुटने, सीने और ठोड़ी को जमीन पर लगा दीजिए। जांघों को थोड़ा ऊपर उठाते हुए सांस को छोडें।
भुजंगासन : इस स्थिति में धीरे-धीरे सांस को भरते हुए सीने को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधा कीजिए। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं ताकी घुटने जमीन को छूते तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। इसे भुजंगासन भी कहते हैं।
पर्वतासन : पांचवी स्थिति जैसी मुद्रा बनाएं। इसमें श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को जमीन पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं।
अश्व संचालन आसन : इस स्थिति में चौथी स्थिति के जैसी मुद्रा बनाएं। सांस को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें।
हस्तासन : वापस तीसरी स्थिति में सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकें। हाथ गर्दन और कानों से सटे हुए और नीचे पैरों के दाएं-बाएं जमीन को स्पर्श करने चाहिए। ध्यान रखें कि घुटने सीधे रहें और माथा घुटनों को स्पर्श करना चाहिए। कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।
हस्त उत्तानासन : यह स्थिति दूसरी स्थिति के समान हैं। दूसरी मुद्रा में रहते हुए सांस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएं। इस स्थिति में हाथों को पीछे की ओर ले जाये और साथ ही गर्दन तथा कमर को भी पीछे की ओर झुकाएं अर्थात अर्धचक्रासन की मुद्रा में आ जाएं।
प्रणाम मुद्रा : यह स्थिति पहली मु्द्रा की तरह है अर्थात नमस्कार की मुद्रा। बारह मुद्राओं के बाद पुन: विश्राम की स्थिति में खड़े हो जाएं। अब इसी आसन को पुन: करें। सूर्य नमस्कार शुरुआत में 4-5 बार करना चाहिए और धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 12-15 तक ले जाएं।
सूर्य नमस्कार 12 आसनों का समूह है। इसके नियमित अभ्यास से पूरी बॉडी को फायदा मिलता है औ शरीर रोगमुक्त रहता है। सूर्य नमस्कार करने से शरीर में ऑक्सीजन का संचार होता है और रक्त प्रवाह अच्छा होता है। यह ब्लड प्रेशर में आरामदायक होता है और वजन कम करने में भी सहायक है। सूर्य नमस्कार करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है।
खास बात यह है कि सूर्य नमस्कार करते हुए 12 मंत्रों का भी उच्चारण किया जाता है। ऐसा करने से एकाग्रता बढ़ती है और योग क्रिया के बेहतर नतीजे सामने आते हैं। यहां नीचे दिए जा रहे लिंक में योग गुरु बाबा रामदेव सूर्य नमस्कार के सभी आसनों को करने का सही तरीका बता रहे हैं। आइए जानते हैं इसे।
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