दादा मुनि के नाम से प्रसिद्ध अशोक कुमार की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।

हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में दादा मुनि के नाम से मशहूर कुमार का जन्म एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। इनके पिता कुंजलाल गांगुली पेशे से वकील थे[2]। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में प्राप्त की। बाद मे उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की। इस दौरान उनकी दोस्ती शशधर मुखर्जी से हुई। भाई बहनो में सबसे बड़े अशोक कुमार की बचपन से ही फ़िल्मों मे काम करके शोहरत की बुंलदियो पर पहुंचने की चाहत थी, लेकिन वह अभिनेता नहीं बल्कि निर्देशक बनना चाहते थे। अपनी दोस्ती को रिश्ते मे बदलते हुए अशोक कुमार ने अपनी इकलौती बहन की शादी शशधर से कर दी। सन 1934 मे न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट काम कर रहे अशोक कुमार को उनके बहनोई शशधर मुखर्जी ने बाम्बे टॉकीज में अपने पास बुला लिया[2]।


फिल्मी सफर संपादित करें
1936 मे बांबे टॉकीज की फ़िल्म (जीवन नैया) के निर्माण के दौरान फ़िल्म के अभिनेता नजम उल हसन ने किसी कारणवश फ़िल्म में काम करने से मना कर दिया। इस विकट परिस्थिति में बांबे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय का ध्यान अशोक कुमार पर गया और उन्होंने उनसे फ़िल्म में बतौर अभिनेता काम करने की पेशकश की। इसके साथ ही 'जीवन नैया' से अशोक कुमार का बतौर अभिनेता फ़िल्मी सफर शुरू हो गया। 1937 मे अशोक कुमार को बांबे टॉकीज के बैनर तले प्रदर्शित फ़िल्म 'अछूत कन्या' में काम करने का मौका मिला। इस फ़िल्म में जीवन नैया के बाद 'देविका रानी' फिर से उनकी नायिका बनी। फ़िल्म मे अशोक कुमार एक ब्राह्मण युवक के किरदार मे थे, जिन्हें एक अछूत लड़की से प्यार हो जाता है। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फ़िल्म काफी पसंद की गई और इसके साथ ही अशोक कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद देविका रानी के साथ अशोक कुमार ने कई फ़िल्मों में काम किया। इन फ़िल्मों में 1937 मे प्रदर्शित फ़िल्म इज्जत के अलावा फ़िल्म सावित्री (1938) और निर्मला (1938) जैसी फ़िल्में शामिल हैं। इन फ़िल्मों को दर्शको ने पसंद तो किया, लेकिन कामयाबी का श्रेय बजाए अशोक कुमार के फ़िल्म की अभिनेत्री देविका रानी को दिया गया। इसके बाद उन्होंने 1939 मे प्रदर्शित फ़िल्म कंगन, बंधन 1940 और झूला 1941 में अभिनेत्री लीला चिटनिश के साथ काम किया। इन फ़िल्मों मे उनके अभिनय को दर्शको द्वारा काफी सराहा गया, जिसके बाद अशोक कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री मे स्थापित हो गए। अशोक कुमार को 1943 मे बांबे टाकीज की एक अन्य फ़िल्म किस्मत में काम करने का मौका मिला। इस फ़िल्म में अशोक कुमार ने फ़िल्म इंडस्ट्री के अभिनेता की पांरपरिक छवि से बाहर निकल कर अपनी एक अलग छवि बनाई। इस फ़िल्म मे उन्होंने पहली बार एंटी हीरो की भूमिका की और अपनी इस भूमिका के जरिए भी वह दर्शको का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने मे सफल रहे। किस्मत ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए कोलकाता के चित्रा सिनेमा हॉल में लगभग चार वर्ष तक लगातार चलने का रिकार्ड बनाया। बांबे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय की मौत के बाद 1943 में अशोक कुमार बॉम्बे टाकीज को छोड़ फ़िल्मिस्तान स्टूडियों चले गए। वर्ष 1947 मे देविका रानी के बाम्बे टॉकीज छोड़ देने के बाद अशोक कुमार ने बतौर प्रोडक्शन चीफ बाम्बे टाकीज के बैनर तले मशाल जिद्दी और मजबूर जैसी कई फ़िल्मों का निर्माण किया। इसी दौरान बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले उन्होंने 1949 में प्रदर्शित सुपरहिट फ़िल्म महल का निर्माण किया। उस फ़िल्म की सफलता ने अभिनेत्री मधुबाला के साथ-साथ पार्श्वगायिका लतामंगेश्कर को भी शोहरत की बुंलदियों पर पहुंचा दिया था।


फिल्म निर्माण संपादित करें
पचास के दशक मे बाम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की और जूपिटर थिएटर को भी खरीद लिया। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहली फ़िल्म समाज का निर्माण किया, लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह असफल रही। इसके बाद उन्होनें अपने बैनर तले फ़िल्म परिणीता भी बनाई। लगभग तीन वर्ष के बाद फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में घाटा होने के कारण उन्होन अपनी प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी। 1953 मे प्रदर्शित फ़िल्म परिणीता के निर्माण के दौरान फ़िल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन हो गई थी। जिसके कारण उन्होंने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया, लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर से बिमल रॉय के साथ 1963 मे प्रदर्शित फ़िल्म बंदिनी मे काम किया यह फ़िल्म हिन्दी फ़िल्म के इतिहास में आज भी क्लासिक फ़िल्मों में शुमार की जाती है। 1967 मे प्रदर्शित फ़िल्म .ज्वैलथीफ. में अशोक कुमार के अभिनय का नया रूप दर्शको को देखने को मिला। इस फ़िल्म में वह अपने सिने कैरियर मे पहली बार खलनायक की भूमिका मे दिखाई दिए। इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। अभिनय मे आई एकरुपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इनमें 1968 मे प्रदर्शित फ़िल्म आर्शीवाद खास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म में बेमिसाल अभिनय के लिए उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फ़िल्म मे उनका गाया गाना रेल गाड़ी-रेल गाड़ी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।


दादामुनि और दूरदर्शन संपादित करें
1984 मे दूरदर्शन के इतिहास के पहले शोप ओपेरा हमलोग में वह सीरियल के सूत्रधार की भूमिका मे दिखाई दिए और छोटे पर्दे पर भी उन्होंने दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। दूरदर्शन के लिए ही दादामुनि ने भीमभवानी बहादुर शाह जफर और उजाले की ओर जैसे सीरियल मे भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया।


पुरस्कार व सम्मान संपादित करें
अशोक कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया। पहली बार राखी 1962 और दूसरी बार आर्शीवाद 1968। इसके अलावा 1966 मे प्रदर्शित फ़िल्म अफसाना के लिए वह सहायक अभिनेता के फ़िल्म फेयर अवार्ड से भी नवाजे गए। दादामुनि को हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ठ सहयोग के लिए 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानितअशोक कुमार भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख अभिनेता रहे हैं। प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार भी आपके ही सगे भाई थे। लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज करने वाले अशोक कुमार का निधन १० दिसम्बर २००१ को हुआ[


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