विश्व पुस्तक मेले, दिल्ली में हिन्दू समाज की स्थिति : एक विश्लेषण

विश्व पुस्तक मेले, दिल्ली में हिन्दू समाज की स्थिति : एक विश्लेषण


2016 विश्व पुस्तक मेले दिल्ली में सभी धर्मों ,पंथों और मत-मतान्तरों के विभिन्न स्टाल लगे थे। जहाँ एक और मुस्लिम और ईसाई समाज के प्रचारक क़ुरान और बाइबिल वितरित कर रहे थे। वहीँ दूसरी और हिन्दू समाज के विभिन्न मत-मतान्तर अपने अपने प्रचार में लगे थे। जहाँ एक ओर इस्लामिक फिरकों के स्वयंसेवक क़ुरान की मान्यताओं का बढ़चढ़कर प्रचार प्रसार कर रहे थे वहीँ दूसरी और हिन्दू समाज के मत-मतान्तर अपने पंथ तक सीमित थे। उदहारण के लिए -


आशाराम बापू के भक्त यही प्रचार कर रहे थे कि हमारे बापू निर्दोष है। 
नित्यानंद स्वामी के भक्त यही प्रचार कर रहे थे कि हमारे स्वामी को फंसाया गया है। 
ओशो के भक्त यही प्रचार कर रहे थे कि सम्भोग से समाधी मिलेगी। 
आशुतोष महाराज के भक्त यही प्रचार कर रहे थे कि हमारे गुरु चिर साधना में व्यस्त है इसलिए रेफ्रीजरेटर में बंद है।
गीता प्रेस वाले कूर्म पुराण, गरुड़ पुराण बेच कर लोगों को संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे थे। 
कबीर पंथी अपनी बाणियों से अपने आपको सेक्युलर सिद्ध करने में लगे हुए थे। 
सहजानन्द के शिष्य अपने गुरु को कल्कि अवतार सिद्ध करने में लगे हुए थे। 
और सबसे प्रसिद्द स्वामी विवेकानंद के प्रचारक सभी को पीछे छोड़ते हुए रामकृष्णा मिशन द्वारा प्रकाशित मुहम्मद साहिब और ईसा मसीह की जीवनियां बेचते दिखे। परोक्ष रूप से वे विधर्मियों का धर्मान्तरण करने का कार्य सरल करते दिखे।


हिंदी साहित्य हाल में केवल और केवल आर्यसमाज ही राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, नवचेतना, सदाचारी, पाखंडों और गुरुडम से मुक्ति दिलाने वाला, विधर्मियों के जाल से बचाने वाला साहित्य वितरित करता दिखा। जहाँ एक ओर इस्लामिक स्टाल विश्व व्यापी आतंकवाद पर बचाव कि दृष्टि में दिखे वहीँ दूसरी ओर आर्यसमाज वेदों के ज्ञान का प्रचार प्रसार करता दिखा। जहाँ एक ओर मुस्लिम प्रचारक वेदों को बीते समय का और क़ुरान को आधुनिक एवं विज्ञान अनुकूल बताते दिखे वहीँ दूसरी ओर आर्यसमाज सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें समुल्लास की सहायता से इस्लाम की मान्यताओं की तर्कपूर्ण समीक्षा करता दिखा। जहाँ एक ओर इस्लामिक प्रचारक ज़ाकिर नाइक की पुस्तकों का सहारा लेकर प्रचार करते दिखे वहीँ दूसरी ओर आर्यसमाज वेदों के विषय में प्रचलित भ्रांतियों का निवारण करता दिखा। हिन्दू समाज के विभिन्न स्टाल केवल अपने चेलों कि संख्या बढ़ाने में लीन थे वहीँ विधर्मियों के कुचक्रों से युवकों को बचाने का श्रेय केवल आर्यसमाज ने लिया। यह अटल सत्य है कि आर्यसमाज हिन्दू समाज के धर्मरक्षक के रूप में जिस प्रकार से पूर्व में कार्य करता आया हैं उसी प्रकार से इस मेले में भी उसने किया। जो पाठक इस वर्ष मेले में आये थे उन्होंने इस पुरुषार्थ के प्रत्यक्ष दर्शन किये। जो पाठक मेले में भाग नहीं ले सके उनको अगले वर्ष का अभी से धर्म सेवा हेतु मेरी और से आमंत्रण हैं।


पाठक अपने विचार अवश्य लिखे।


(चित्र सलंग्न- रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित मुहम्मद साहिब और ईसा मसीह की जीवनियां)


डॉ विवेक आर्य


No comments:

Featured Post

Social Media Marketing: Earn Money Online

  Social Media Marketing: Earn Money Online In today’s digital age, social media marketing has emerged as a powerful tool not just for ...