बौद्ध के नैतिक और कर्म

नैतिक और कर्म, 



बुद्ध इस बात पर विशेष बल देते थे कि मनुष्य को सदाचार के कड़े सिद्धान्तों का पालन करते हुए नैतिक जीवन व्यतीत करना चाहिए। वे कहते थे कि दूसरों की सहायता करने का यत्न करना चाहिए, और यदि ऐसा कर पाना सम्भव न हो तो कम से कम दूसरों को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। उन्होंने कर्म या व्यवहारजन्य कार्य-कारण के वैज्ञानिक सिद्धान्त की दृष्टि से नीति शास्त्र की व्याख्या की। “कर्म” का अर्थ भाग्य नहीं है, बल्कि कर्म से हमारा आशय उन मनोवेगों से होता है जो व्यक्ति की दैहिक, शाब्दिक और मानसिक क्रियाओं के प्रेरक होते हैं और उन क्रियाओं के साथ संलग्न होते हैं। सकारात्मक अथवा नकारात्मक क्रियाएं करने के लिए प्रवृत्त करने वाले मनोवेगों की उत्पत्ति हमारी वृत्ति का अनुकूलन करने वाले पिछले अनुभवों के कारण होती है और इन मनोवेगों के वशीभूत की जाने वाली क्रियाएं व्यक्ति के लिए एक निश्चित सुख या पीड़ा का कारण बनती हैं। सुख अथवा पीड़ा की ये स्थितियाँ इस जन्म में या अगले जन्मों में कर्ता के समक्ष उपस्थित होंगी।
पुनर्जन्म


अन्य भारतीय धर्मों की ही भांति बौद्ध धर्म में भी पुनर्जन्म या अवतार की मान्यता है। व्यक्ति की वृत्ति, गुण आदि सहित उसका मनोगत सातत्य उसके पिछले जन्मों से भविष्य के जन्मों तक चलता रहता है। किसी व्यक्ति की क्रियाओं और प्रवृत्तियों के आधार पर उसका पुनर्जन्म स्वर्ग अथवा नरक में, या किसी पशु के रूप में, मनुष्य के रूप में अथवा अनेक प्रकार के प्रेतों में से किसी प्रेत के रूप में या भूत के रूप में हो सकता है। समस्त जीव आसक्ति, क्रोध और मूढ़ता जैसी अशांत करने वाली मनोवृत्तियों और उनके कारण उद्भूत मनोवेगों के वशीभूत पुनर्जन्म की नियंत्रणातीत प्रक्रिया और अनिवार्यतः क्रिया करने की प्रक्रिया से होकर गुज़रते हैं।


No comments:

Featured Post

Social Media Marketing: Earn Money Online

  Social Media Marketing: Earn Money Online In today’s digital age, social media marketing has emerged as a powerful tool not just for ...